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दिल का द्रर्द कोई झलकता जाम नहीं।

दिल का द्रर्द कोई झलकता जाम नहीं।दिल का द्रर्द कोई झलकता जाम नहीं।
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जो द्रर्द देने वाले को दिखता है द्रर्द कोई बजारू समान नहीं,जो बिकता है ।
द्रर्द तो वो कहर है , जो सुबह हो या शाम बस टिसता है ।
चोट तो बस बात की है,जो दिल लिखता है ।
कभी रातों के पहर में, तो कभी उस बात की लहर में ।
चलो मिटा दो प्यार रूपी मरहम लगा दो ।
पर क्या वो चोट की द्रर्द किसी को दिखता है।
ये प्यार रूपी मरहम से द्रर्द कम न होता , पर हाँ इंसान द्रर्द में सिखता ।