मैं रात से बात नहीं करता मैं

मैं रात से बात नहीं करतामैं रात से बात नहीं करता
मैंअंधेरो से मुलाकात नहीं करता
मैंने तो जुगनुओं से दिल लगा रखे हैं ।
मैं छिपती-छुपती चाँद से बात नहीं करता
मैं रात को अक्सर कहता हूँ ,औकात में रह ।
मैं तेरे से नज़र न लगने का टीका बना लेता हूँ ।
तू कितना काला हो जा ,मेरे सफर में ।
मैं तुम्हें जीवन का तरीका बना लेता हूँ ।
मैं रात से बात नहीं करता
मैं अंधेरो से मुलाकात नहीं करता।
रात हम से छुप – छुपा के अँगुलियों से सहला जाती है
कभी प्यार जताती है ,तो कभी प्यार निभाती है ,
ये साजिश है उसकी ।
पर मेरे जुगनुओं के आगे सँभल नहीं पाती है ।
मैं चुप सा रात की जज्बात नहीं समझता ।
मैं रात से बात नहीं करता
मैं अंधेरो से मुलाकात नहीं करता। …..जारी है ….